साइंस फिक्शन जैसा लगता है न? लेकिन एलन मस्क की न्यूरालिंक (Neuralink) ब्रेन चिप ने दुनिया को हिला दिया है अपनी पहली मानव परीक्षण (Human Trial) से।
न्यूरालिंक एक ऐसा ब्रेन चिप है जो इंसानों को सीधे मशीनों से जोड़ देता है।
अमेरिका के पहले मरीज़ ने सबको चौंका दिया जब उसने सिर्फ अपने दिमाग के इशारों से कंप्यूटर का कर्सर हिलाया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह “दिमाग से चलने वाली तकनीक की शुरुआत” है।
यह कैसे काम करता है?
न्यूरालिंक एक नई ब्रेन-कंप्यूटर तकनीक है। यह एक छोटा चिप है जिसे डॉक्टर आपके दिमाग में लगाते हैं। यह चिप आपके ब्रेन सिग्नल्स पढ़कर मशीनों को भेज देता है।
शुरुआत में इसे लकवाग्रस्त (Paralyzed) मरीज़ों की मदद के लिए बनाया गया है, ताकि वे कंप्यूटर माउस चला सकें, टाइप कर सकें या सिर्फ सोचकर रोबोटिक आर्म्स नियंत्रित कर सकें।
अभी यह आम लोगों के लिए नहीं है—यह सिर्फ मेडिकल ट्रायल्स के लिए है और बहुत महंगा है। लेकिन टेक विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 15–20 सालों में यह चिप उतनी ही आम हो सकती है जितना आज स्मार्टफोन।
भविष्य में यह आम लोगों की भी मदद कर सकती है—जैसे याददाश्त बढ़ाना, तेज़ी से सीखना, या सिर्फ सोचकर डिवाइस को नियंत्रित करना।
क्या यह सस्ती होगी?
शुरुआत में नहीं—क्योंकि सर्जरी और नई टेक्नोलॉजी बहुत महंगी होती है। लेकिन जैसे स्मार्टफोन पहले बहुत महंगे थे और धीरे-धीरे सस्ते हो गए, वैसे ही न्यूरालिंक भी 10–20 सालों में आम लोगों के लिए सुलभ हो सकती है।
भारत में कब आएगी?
भारत में इसके आने में ज़्यादा समय लगेगा, शायद 15–25 साल, क्योंकि यहाँ मेडिकल अप्रूवल्स, खर्च और टेस्टिंग की प्रक्रिया लंबी होती है। पहले यह अमेरिका और अमीर देशों में फैलेगी, उसके बाद ही भारत में उपलब्ध होगी।
मरीज़ों पर चल रहा ट्रायल
2024 की शुरुआत में न्यूरालिंक के पहले मरीज़ ने सिर्फ सोचकर कंप्यूटर का कर्सर चलाया। तब से लेकर अब तक के ट्रायल्स में सकारात्मक नतीजे मिले हैं। लकवाग्रस्त मरीज़ टाइपिंग, ब्राउज़िंग और छोटे गेम्स खेल पा रहे हैं।
डॉक्टर्स इसे “विकलांगों के लिए क्रांति” बता रहे हैं और टेक विशेषज्ञों का कहना है कि यह तो बस शुरुआत है।
न्यूरालिंक के 5 अद्भुत तथ्य
- न्यूरालिंक इंसानी बाल से भी पतले धागों से ब्रेन सिग्नल पढ़ती है।
- सर्जिकल रोबोट इस चिप को बेहद सटीक तरीके से लगाता है।
- एक दिन यह अंधों को रोशनी और लकवाग्रस्त लोगों को चलने में मदद कर सकती है।
- एलन मस्क का मानना है कि यह इंसानी दिमाग को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जोड़ सकती है।
- 2024 में हुई पहली सफल मानव ट्रायल ने न्यूरोसाइंस के इतिहास को बदल दिया।
नतीजा
न्यूरालिंक अभी शुरुआती दौर में है और कई सालों तक महंगी रहेगी। लेकिन जैसे स्मार्टफोन आज हर किसी के पास हैं, वैसे ही यह भविष्य में आम ज़िंदगी का हिस्सा बन सकती है।
लकवाग्रस्त मरीज़ों के चलने से लेकर छात्रों के तेज़ी से सीखने तक—न्यूरालिंक इंसानी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल सकती है।
क्या आप तैयार हैं इस दिमाग से चलने वाली क्रांति के लिए?