हम जो गीत गाते रहे
दशकों से “मेरे देश की धरती सोना उगले” का गीत सिनेमा, कक्षाओं और स्वतंत्रता दिवस के मंचों पर गूंजता रहा। इसने भारत को एक जादुई भूमि की तरह चित्रित किया, जहाँ मिट्टी से सोना उगता है, समृद्धि सहज रूप से बहती है और जहाँ हर कीमती चीज़ का जन्म होता है। लेकिन जब इस भावुक परत को हटाते हैं, तो सच्चाई उतनी आकर्षक नहीं लगती।
अपने विद्यार्थी जीवन भर जब भी मैंने “मेरे देश की धरती सोना उगले” सुना, मेरा मन गर्व से भर जाता था। मुझे सच में लगता था कि मेरे देश की मिट्टी सोने और खज़ानों से भरी है। वर्षों तक मैं इस सुंदर लेकिन झूठी धारणा में जीता रहा। जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ और असलियत जानी—कि अधिकांश कीमती संसाधन कहीं और हैं—मुझे धोखा-सा महसूस हुआ। यह गीत मुझे एक ऐसे भ्रम, एक ऐसे मायाजाल में बाँधकर रखे रहा जिसने मेरी आँखें वर्षों तक बंद रखीं।
दुनिया की दौलत कहीं और है
- हीरे? बेल्जियम, बोत्सवाना और रूस हीरा व्यापार में सबसे आगे हैं।
- सोना? ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और चीन भारत से कहीं अधिक सोना निकालते हैं।
- रेयर अर्थ मिनरल्स? चीन इनके उत्पादन में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखता है।
- यूरेनियम? कज़ाखस्तान, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के पास मुख्य भंडार हैं, भारत के पास नहीं।
- बादाम? दुनिया के लगभग 80% बादाम कैलिफ़ोर्निया में पैदा होते हैं।
- केसर? ईरान दुनिया की 90% से ज़्यादा सप्लाई करता है।
तो अगर यहाँ सोना नहीं, हीरे-मोती नहीं, और यहाँ तक कि बादाम व केसर भी नहीं — तो आखिर हम किस बात पर घमंड कर रहे हैं?
एक खोखला राष्ट्रगान
यह गीत 1960 के दशक में प्रेरणादायी हो सकता था, जब भारत आज़ादी के बाद खुद को फिर से खड़ा कर रहा था। लेकिन आज यह गीत खोखला लगता है। अतिरंजना में लिपटा राष्ट्रवाद केवल भ्रम पैदा करता है। मिट्टी से सोना उगाने के गीत गाना हमें आर्थिक महाशक्ति नहीं बनाता — बल्कि व्यापार संतुलन, तकनीक और नवाचार हमें बनाते हैं।
आत्मश्लाघा की समस्या
भारतीय अक्सर दोहराते हैं: “हमारी धरती सबसे अच्छी है।” पर वैश्विक आँकड़े कुछ और कहते हैं।
- संसाधन-समृद्ध होने के बजाय भारत को तेल, गैस और खनिज आयात करने पड़ते हैं।
- विलासिता वाली फ़सलें देने के बजाय भारत अक्सर आयात पर निर्भर रहता है।
- यूरेनियम और रेयर अर्थ में अग्रणी होने के बजाय भारत काफ़ी पीछे है।
जब आत्मश्लाघा आत्मचेतना की जगह ले लेती है, तब राष्ट्र ठहराव में फँस जाता है।
भारत की असली ताकत
इसका मतलब यह नहीं कि हमारी भूमि बेकार है। भारत की असली ताक़त कभी भी प्राकृतिक संसाधनों में नहीं रही बल्कि लोगों, संस्कृति और ज्ञान-परंपराओं में रही है।
- आयुर्वेद, योग और जैन-बौद्ध दर्शन ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया।
- भारत की आईटी और फ़ार्मा इंडस्ट्री ने साबित किया कि दिमाग़ खदानों से अधिक मूल्यवान है।
- भारतीय प्रवासी दुनिया भर में खरबों का योगदान करते हैं और अरबों की राशि देश में भेजते हैं।
लेकिन इन सबको झूठे गीतों की ज़रूरत नहीं है। सच्चा गर्व हमेशा अतिरंजित नारों से अधिक शक्तिशाली होता है।
अंतिम शब्द
अब समय आ गया है कि हम “मेरे देश की धरती सोना उगले” जैसे गीतों को सत्य का प्रमाण मानना बंद करें। आइए हम मनाएँ उस भारत को जो वास्तव में अच्छा है — उसकी दृढ़ता, उसका नवाचार और उसकी मानव-क्षमता। क्योंकि सच्चा देशभक्ति झूठी शान से नहीं, बल्कि ईमानदार पहचान से आती है।
Authored by Nilesh Lodha — Goldmedia.in | Bold Truths. No PR. Just Perspective
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